Rawna Rajput History and Kuldevi

रियासतकाल में राजा, राणा आदि शासकीय उपाधियों की तरह राव भी राजवर्गीय उपाधि थी। राव उपाधि से रावत, रावल, रावणा आदि कई जातियाँ बनीं। राव शब्द के साथ ‘णा’ प्रत्यय जुड़ने से (राव+णा) रावणा शब्द बना। रावणा-राजपूत-मीमांसा नामक पुस्तक में ठाकुर जयसिंह बघेला लिखते हैं –
“रावणा शब्द का अर्थ राजपूत (क्षत्रियत्व बोधक) समूह के वर्ण बोधकार्थ लगाया जाता है और ‘णा’ का अर्थ भाववाचक मानें तो राजपूती भाव वाला, क्रियावाचक मानें तो रावोक्त क्रिया वाला और जातिवाचक मानें तो राजपूत जाति वाला होता है। अतः उपरोक्त बनावटों पर ध्यान दें तो रावणा शब्द राजपूत शब्द का पर्यायवाची ही सिद्ध होता है। ” (पृ. 26)

विकिपीडिया में रावणा राजपूतों के बारे में इस प्रकार वर्णन किया गया है – “रावणा राजपूत एक उप क्षत्रिय है जो सामंत काल में भूमि ना रहने से पर्दा क़ायम न रख सके और अन्य राजपूत जो शासक व जमीदार या जागीरदार थे ने इन्हें निम्न दृष्टि से देख इनपर सामाजिक एवं शारीरिक अत्याचार किये तथा इन पर विभिन्न प्रथाओं को क़ायम कर इनका  सामाजिक शोषण किया।…..कालांतर में राजपूत जाती में भी अनेक जातियां  निकली। उस व्यवस्था में रावणा राजपूत नाम की जाति राजपूत जाति में से निकलने वाली अंतिम जाती है, जिसकी पहचान के पूर्वनाम दरोगा, हजुरी वज़ीर आदि पदसूचक नाम है।…..रावणा शब्द का अर्थ राव+वर्ण से है अर्थात योद्धा जाति यानी की राजाओं व सामंतों के शासन की सुरक्षा करने वाली एकमात्र जाति जिसे रावणा राजपूत नाम से जाना जाए। इस नाम की शुरुआत तत्कालीन मारवाड़ की रियासत के रीजेंट सर प्रताप सिंह राय बहादुर के संरक्षण में जोधपुर नगर के पुरबियों के बॉस में सन १९१२ में हुई है।  जिस समय इस जाति के अनेकानेक लोग मारवाड़ रियासत के रीजेंट के शासन और प्रशासन में अपनी महत्वपूर्ण भागीदारी निभा रहे थे।”
उल्लेखनीय है कि ‘णा’ प्रत्यय से पुष्कर+णा = ‘पुष्करणा’, बाफ+णा = बाफणा आदि अनेक जातिवाचक संज्ञाएं बनी हैं जो राजपूत जाति की शाखाएँ हैं।
राजपूतों की रावणा शाखा वस्तुतः विभिन्न राजवंशों का समूह है। विभिन्न राजवंशों के राव (शासक) मुस्लिम शासकों से निरन्तर संघर्ष करते हुए राज्यहीन हो गए। उनकी सन्तानें मुस्लिम-साम्राज्य की अधीनस्थ राजपूत रियासतों में दरोगा पदों पर नियुक्त हुए। ठा. जयसिंह बघेला के अनुसार दरोगा डिपार्टमेन्ट के अफसर को कहा जाता था। इस कारण रावणा दरोगा भी कहे जाने लगे।
रावणा जाति में अनोपदास नामक समाजसुधारक सन्त हुए। उनकी प्रेरणा से रावणा जाति में विधवा-विवाह, पर्दाप्रथा-उन्मूलन आदि सुधार प्रवृत्तियों की शुरुआत हुई फलस्वरूप रूढ़िवादी समृद्ध व प्रभावशाली राजपूत समाज में रावणा समाज के प्रति लगाव में कमी आई। किन्तु गरीब राजपूतों का रावणा समाज में अधिकाधिक प्रवेश होने से इस समाज की संख्या तेजी से बढ़ी। हैसियत – आधारित सगपण भी गरीब राजपूतों की रावणा समाज के प्रति उन्मुखता का कारण रहा। मारवाड़ राज रिपोर्ट सन् 1891 खण्ड 2 में लिखा है – ‘ऊँचा सगपण बड़ी हैसियत वाले से बन पड़ता है’ ज्यों-ज्यों गरीब होता जाता है त्यों-त्यों उसका संबंध नीचे होता जाता है, यहाँ तक कि नातरायत के दर्जे में पहुँच जाता है। लेकिन जब फिर तरक्की करने लगता है और बढ़ता-बढ़ता जागीरदार हो जाता है तब वह अपनी बेटी को फिर उन्हीं गनायतों (समृद्ध राजपूतों) में परना सकते हैंजिन्होंने उसे त्याग दिया था।
इस प्रकार रावणा (आर्थिक तौर पर कमजोर) तथा गनायत (आर्थिक तौर पर समृद्ध) के बीच केवल आर्थिक भेद है। यह अलग जाति नहीं है।

रावणा समाज की कुलदेवियाँ


रावणा समाज में गोत्रानुसार राजपूत समाज की कुलदेवियाँ ही परम्परानुसार पूजी जाती हैं, जैसा कि अभी आपको बताया कि रावणा कोई अलग जाति नहीं है, यह केवल आर्थिक भेद से उत्पन्न शाखा है।


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