नागर ब्राह्मण समाज की उत्पत्ति, इतिहास, गोत्र तथा कुलदेवता

Nagar Brahmin Samaj History Gotras in Hindi : नागर ब्राह्मण मुख्यतः गुजरात में निवास करते हैं, परन्तु राजस्थान, मालवा, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, बिहार, पंजाब, हरयाणा, हिमाचल प्रदेश के अलावा पश्चिम बंगाल तथा कर्नाटक में भी मिलते हैं।
माना जाता है कि नागर, ब्राह्मणों के सबसे पुराने समूह में से एक है। कुछ इतिहासकारों का दावा है कि नागरों का मूल आर्य है। वे दक्षिण यूरोप और मध्य एशिया से भारत आए हैं। वे हिंदू कुश के माध्यम से या तो त्रिवेट्टापा या तिब्बत चले गए ;  बाद में कश्मीर होते हुए कुरुक्षेत्र के आसपास आकर बस गए।

राजा चमत्कार का उपहार : ‘वड़नगर’ –  किंवदंती है कि अपने जीवन को बचाने के लिए गुजरात के राजा चमत्कार ने ब्राह्मणों के लिए उपहार स्वरूप एक नगर बसा दिया।  कथा के अनुसार, एक दिन राजा शिकार के लिए निकला। एक हिरणी अपने बच्चे को स्तनपान करा रही थी। राजा ने उस हिरणी के बच्चे को मार दिया। हिरण ने राजा को शाप दिया जिसके परिणामस्वरूप राजा के शरीर पर सफ़ेद दाग हो गए तथा वह बीमार पड़ गया। उसी क्षेत्र में ब्राह्मणों का एक छोटा सा गाँव था। वहां के ब्राह्मणों ने जड़ी-बूटियों के द्वारा राजा को पुनः स्वस्थ कर दिया। राजा ने उन ब्राह्मणों का आभार माना और उपहार स्वरूप उन्हें धन व जमीन देने का प्रस्ताव दिया, परन्तु उच्च सिद्धांतों वाले उन ब्राह्मणों ने इसे अस्वीकार कर दिया। बाद में रानी उस गाँव में आकर उन ब्राह्मणों की पत्नियों से धन व जमीन लेने का अनुरोध किया।रानी के बहुत निवेदन करने पर 72 स्त्रियों में से 68 स्त्रियों ने इसे स्वीकार कर लिया। जो ब्राह्मण परिवार राजा द्वारा दिए इस नगर में रहे; नगर में रहने के कारण वे ब्राह्मण नागर कहलाने लगे। कुछ ब्राह्मण नगर से बाहर अपने आश्रमों में ही रहे, वे बाह्यनागर कहलाये। समयानुसार इस नगर के कई नाम बदले। यह मदनपुर, स्कंदपुर, अनंतपुर, आनंदपुर, वृद्धनगर और वडनगर नाम से जाना गया। वर्तमान में यह वड़नगर के रूप में जाना जाता है।
प्रसिद्ध  विद्वान् वराह मिहिर ने अपनी पुस्तक ‘बृहद संहिता’ में नागरों का उल्लेख किया है कि नागर विक्रम सम्वत के प्रारम्भ में भी मौजूद थे। इससे ज्ञात होता है कि नागर ब्राह्मण विक्रम सम्वत से पहले भी अस्तित्व में थे।

नागरों की उत्पत्ति के कुछ अन्य सिद्धांत 



 “स्कंद पुराण” – सबसे पुराना धार्मिक ग्रन्थ उपलब्ध है, जो कि नागर समुदाय की उत्पत्ति और विकास का वर्णन करता है। “स्कंद पुराण” में एक विस्तृत और एक स्वतंत्र “नाग-खण्ड” है – जो कि नागर समुदाय के विकास का स्पष्ट रूप से वर्णन करता है। 
1. “क्रथा” नामक एक ब्राह्मण था – जो देवरत का पुत्र था। उसका स्वभाव बड़े होते-होते क्रूर हो गया। एक बार वह जंगल में जाने पर ‘नाग-तीर्थ’ नामक स्थान पर पहुंचा जहां नाग (सर्प) एक साथ रहते थे। उस समय नाग राजा के राजकुमार रुद्रमल अपनी माँ के साथ नगर में टहलने के लिए आये थे। क्रथा का रुद्रमल के साथ आमना-सामना हुआ तो क्रथा ने रुद्रमल को एक साधारण नाग समझकर मार डाला। रुद्रमल ने क्रथा से बहुत विनती की ‘मैं निर्दोष हूँ फिर भी आप मुझे क्यों मार रहे हैं।’ रुद्रमल की इंसानी आवाज सुनकर क्रथा चकित हो गया और डरकर वहां से भाग गया। रुद्रमल की मां यह देखकर बेहोश हो गई और जब वह होश में आई तो बहुत रोयी। वह जल्द ही अपने पति के पास गई और पूरी घटना सुनाई। पूरे नाग समुदाय वहां इकट्ठे हुए और रुद्रमल के शरीर का अंतिम संस्कार किया। उसके पिता ने यह शपथ की कि जब तक वह हत्यारे के पूरे परिवार को नष्ट न कर दे तब तक वह अपने दिवंगत पुत्र को अंतिम श्रद्धांजलि नहीं देगा। उन्होंने अपने पूरे समुदाय के सदस्यों को अपराधी का पता लगाने का आदेश दिया और निर्देश दिया कि श्री हाटकेश्वर तीर्थ जाकर क्रथा के सभी परिवार के सदस्यों को मार डालें। इस प्रकार, सभी नाग नागरिक चमत्कारपुर गए, और क्रथा के परिवार और रिश्तेदारों के घरों पर हमला करके आतंक फैलाया। इन सभी आतंकियों से खुद को बचाने के लिए सभी ब्राह्मण परिवार वन में चले गए। नाग राजा ने तब अपने दिवंगत पुत्र को अंतिम श्रद्धांजलि अर्पित की। ब्राह्मण जंगलों में कब तक रह पाते ? उन सभी ब्राह्मणों ने त्रिजट नाम के एक बड़े संत को आत्मसमर्पण कर दिया और उन्हें पूरी कहानी सुनाई।  त्रिजट को भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त था। ब्राह्मणों को ऐसी दीन दशा में देखकर त्रिजट ने भगवान शिव की पूजा की और ब्राह्मणों की रक्षा करने के लिए प्रार्थना की। भगवान शिव प्रसन्न हुए। भगवान शिव ने कहा कि वह नाग समुदाय को नष्ट नहीं कर सकते। हालांकि, वे उन में निहित जहर को समाप्त कर सकते हैं। इसके लिए, भगवान शिव ने एक मंत्र दिया। जब इन ब्राह्मणों “ना-गर” – (विष नहीं) ने मंत्रोच्चारण के साथ अपने घरों में प्रवेश किया तब तक वे काफी वृद्ध हो चुके थे। इसलिए, शहर को “वृद्धनगर” के रूप में जाना जाने लगा। जो बाद में बदलकर “वडनगर” हो गया।
2. भगवान शिव की पूजा में “नाक” के उच्चतम स्थान पर खड़ा होने वाला समुदाय को “नाकर” के रूप में जाना जाता था – जो “नागर” के रूप में लोकप्रिय हुआ।

3. यह भी एक धारणा है कि भारत के पश्चिमी भाग में शकों और यवनों के आक्रमण के बाद सौराष्ट्र में कई छोटे राज्य स्थापित किए गए थे। विदेशियों के आक्रमण से खुद को बचाने के लिए ब्राह्मणों ने वनों के एकान्त स्थानों को छोड़ दिया और राज्य के राजाओं के आश्रय के तहत नगरों में रहना शुरू कर दिया था। और इस कारण उन ब्राह्मणों को नागर के नाम से जाना जाने लगा।
4. यह भी माना जाता है कि गुजरात आने से पहले नागर सिंध में रहते थे। सर हेबर रिडले के मुताबिक, नागर “शक” और “द्रविड़” की क्रॉस-संतानें हैं। डॉ भंडारकर भी यह मानते हैं कि नागरों का जन्म हमारे देश के बाहर हुआ है। सीमा पार से नागर पहले कश्मीर आए और फिर वे राजस्थान, पंजाब, उत्तर प्रदेश, बंगाल, माल्वा और गुजरात राज्यों में फैले। कुरुक्षेत्र से पलायन करने के बाद वे पहले आज के आनंदपुर-वडनगर में बस गए थे।
5. एक धारणा नागरों के मूलतः ग्रीक होने की है। जब सिकंदर ने भारत पर हमला किया, वह कश्मीर के माध्यम से अपनी सेना के साथ आए थे। लौटने पर, कई यूनानी सैनिक कश्मीर में बसे थे। वे कश्मीर के पंडित समुदाय के निकट संपर्क में आए और जिसके परिणामस्वरूप नागरों का जन्म हुआ। बाद में वे देश के अन्य हिस्सों में चले गए। नागरों और यूनानियों को आज भी बुद्धिमता व शारीरिक बनावट के तौर पर समान माना जाता है। 

6. जब महाभारतकाल में जब पाण्डव वनवास के समय पूरे देश में घूम रहे थे। तब एक बार अर्जुन असम पहुंचा। वहां नाग वंश का शासन था।  वह नाग राजा की बेटी उलूपी के संपर्क में आया। वे करीब 2 साल तक एक साथ रहे। बाद में अर्जुन ने असम छोड़ दिया। उलूपी ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम बभ्रूवाहन रखा गया । समय बीत गया। पांडवों ने अश्वमेध यज्ञ करने का निश्चय किया। असम के अलावा देश में कहीं भी यज्ञ के घोड़े को नहीं पकड़ने का साहस नहीं हुआ। अर्जुन की सेना और बभ्रुवाहन की सेना में भीषण युद्ध हुआ जिसमें भारी जनहानि हुई। अर्जुन को भी बभ्रुवाहन ने मार दिया। बभ्रुवाहन ने अपनी मां उलूपी को अपनी जीत की खबर तथा अर्जुन की हत्या के बारे में बताया। उलूपी खबर की पुष्टि करने के लिए युद्ध के मैदान में आयी और अर्जुन की मृत्यु से अत्यन्त दुःखी हुई। उसने बभ्रुवाहन से कहा कि अर्जुन तुम्हारे पिता थे। तब दोनों ने अर्जुन को पुनः जीवित बनाने का फैसला किया। बहुत पहले उलूपी के पिता ने भगवान् शिव की तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया था तथा भगवान शिव से जीवन-बचाने वाली दवा “संजीवम” प्राप्त की थी। उलूपी ने बभ्रुवाहन को बताया कि अगर वह भी इसी तरह तपस्या करता है तो वह भी इस जीवन-रक्षक दवा को प्राप्त कर सकता है। बभ्रुवाहन ने ऐसा किया तथा दवा प्राप्त कर अर्जुन को पुनः जीवित कर दिया। सभी नगर में एक साथ वापस आये। बभ्रुवाहन के नाना नाग राजवंश के प्रमुख थे और उनका नाम हाटक था। इसलिए हाटक के देवता हाटकेश्वर के नाम से जाने जाते थे।  जिस शिवलिंग के समक्ष हाटक तथा बभ्रुवाहन ने तपस्या की थी, वे हाटकेश्वर कहलाये।
7.प्रसिद्ध नागर साहित्यकार श्री रमनलाल वसंतलाल देसाई के अनुसार – मेवाड़ के प्रथम पुरुष बप्पा रावल एक नागर थे। उनका यह भी मानना है कि कुछ नागर ईरान से आए और गुजरात में बस गए। यह इस दृष्टिकोण को सही ठहराता है कि भारत के अन्य हिस्सों की तुलना में नागर मूल रूप से गुजरात से हैं। 
8. जुनागढ़ के एक प्रसिद्ध इतिहासकार और एक प्रसिद्ध नागर श्री शंभूप्रसाद देसाई ने नागर के इतिहास के बारे में अपनी पुस्तक में उल्लेख किया था कि, नागर पहले ग्रीस, मैसेडोनिया, सीरिया या इन जगहों के आस-पास के क्षेत्र से आए थे। जॉर्डन और इज़राइल के पास एक नागर नामक क्षेत्र है। इसके अलावा ईरान में एक नागर समुदाय भी है, जो बुद्धिमान और अच्छे और कुशल प्रशासकों के रूप में प्रसिद्ध हैं। वे वहां से पहले कांगड़ा (पहले नगरकोट) हिमालय के लिए आए होंगे। “नग” का अर्थ पर्वत है। और “नाग” का अर्थ है पहाड़ी क्षेत्र में रहने वाले व्यक्ति।

कुलदेवता हाटकेश्वर महादेव

ब्राह्मणोत्पत्ति मार्तण्ड के अनुसार नगर ब्राह्मण समाज के कुलदेवता हाटकेश्वर महादेव हैं जो गुजरात में शंखतीर्थ के पास वड़नगर में विराजित है। पौराणिक कथा के अनुसार ब्रह्माजी ने हाटक (स्वर्ण) से शिवलिंग बनाकर उसका पूजन किया और हाटकेश्वर तीर्थस्थल स्थापित किया। उन्होंने गुजरात के उस क्षेत्र के ब्राह्मणों को हाटकेश्वर महादेव की पूजा की प्रेरणा दी –

मया ह्यद्यत्विदं लिङ्ग हाटकेन् विनिर्मितम्। 
अस्य पूजनयोगेन चतुर्वर्गफलं भवेत्।।
ब्रह्माजी बोले, मैंने आज यहाँ स्वर्णनिर्मित शिवलिंग का प्रतिष्ठापन किया है। इस पूजन से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष रूप चतुर्वर्गफल की प्राप्ति होगी।
यत्र वै स्नानमात्रेण हाटकेश्वर दर्शनात्। 
चाण्डालत्वाद्विनिर्मुक्तः त्रिशङ्कुनृपसत्तमः।।
हाटकेश्वर के दर्शन करने और उस तीर्थ में स्नान करने से राजा त्रिशंकु चाण्डालत्व-शाप से मुक्त हो गया।

नागरों की देवी – नागर ब्राह्मणों की देवी का नाम ‘भागरी देवी‘ बताया है। 

नागर ब्राह्मणों के आठ अवंटक


ब्राह्मणोत्पत्ति मार्तण्ड में नागरों के आठ अवंटक बताये गए हैं। ये आठ अवंटक हैं –
  1. दवे 
  2. दवे पंचक 
  3. मेता तलखा पंड्या भूधर 
  4. अनाम 
  5. बास मोढासा के 
  6. जानि 
  7. त्रवाड़ी 

नागरों के उपनाम 


नीचे कुछ प्रसिद्ध नागर उपनामों को अपने इतिहास और मूल के साथ दिया जा रहा है। हालांकि जानकारी को बहुत विश्वसनीय स्रोतों से लिया गया है और इसे प्रामाणिक माना जा सकता है, लेकिन इतिहास बहुत बड़ा है इसलिए त्रुटियों की भी सम्भावना है।
 1. आवाशिया: राजस्थान में प्रतापगढ़ नामक एक जगह थी, जो बाद में आवासगढ़ के रूप में जाना जाने लगा। यहाँ के निवासी नागरों को ‘आवाशिया‘ कहा जाने लगा। कच्छ और जूनागढ़ में यह उपनाम अधिक प्रचलित है।
2. अंजारिया :  अंजार (कच्छ) में रहने वाले आवाशियों को ‘अंजारिया’ कहा जाता है।
3. अन्तानी: यह उपनाम नाम ‘अनंत’ से निकला है जो वड़नगर में नागर परिवार का एक विशिष्ट व्यक्ति था। यह उपनाम कच्छ में प्रचलित है
4. ओझा: इस उपनाम को ‘वधेदिया’ के रूप में जाना जाता था। इसका वेद ‘अथर्ववेद’ था। इस उपनाम वाले लोग मंत्रों में पारंगत थे और शुरुआत से ही विद्वतापूर्ण थे। इन विशेषताओं ने उन्हें अपना वर्तमान उपनाम ‘ओझा’ दिया।
5. खारोड: खारोड ‘अमदावद’ जिले में एक स्थान है। यहां रहने वाले नागरों ने ‘खारोद’ उपनाम स्वीकार कर लिया।
6. घोडादराघोडादरा नामक एक स्थान है जो सौराष्ट्र में है। यह माना जाता है कि यहां रहने वाले लोग घोडादरा उपनाम के थे। 
7. छाया: यह माना जाता है कि कई नागर 1725 ईसवी में पोरबंदर में छैया नामक स्थान पर आए और इस नए राज्य में सेवा करने लगे। इसलिए उन्हें ‘छाया’ उपनाम दिया गया था।
8. जठल : मांगरोल के ‘जुठल ‘ परिवार के सदस्यों को ‘जठल‘ के रूप में जाना जाने लगा।
9. जोशीपुरा: मारवा में ‘जोशीपरा’ नामक एक गांव है। यह माना जाता है कि जोशीपरा में रहने वाले नागर जोशीपुरा के रूप में जाना जाने लगे। 
10. नानावती: धन के लिए काम करने वाले नागर (धन को गुजराती में नाना भी कहा जाता है) को नानावती कहा जाता था।
11. मंकड़: यह उपनाम ऋषि मार्कंडा के नाम से उपजा है।
12. वासवड़ा: सौराष्ट्र के वासवड गांव में निवास करने वाले नागर वासवड़ा कहलाते हैं।
13. याज्ञिक / जानी: यह उपनाम विशनगर नागर कुलवन / गृहिष्ठ परिवार के है।
  • कुछ नाम भौगोलिक नाम से प्राप्त होते हैं
  1. ढेबरवाड़ा से ढेबर
  2. हाथप से हाथी
  3. ककासिया से कुकासिया (अब वैष्णव)
  4. महुधा से महधिया
  5. मनकोड़ीवाड़ा से मानकोड़ी
  6. पाटन से पाटनी
  7. राणाव से राणा
  8. ऊना से ऊनाकार
  9. वेरवाल (वैष्णव के रूप में जाना जाता है) से वेरवाला
  • कुछ नाम पारिवारिक वंश से प्राप्त होते हैं
  1. अंतानी
  2. अनंतानी
  3. भवानी
  4. भयानी
  5. कीकाणी
  6. मकनानी
  7. प्रेमपुरी
  8. ऋणदानी
  9. सवानी 
  10. वच्छरजनी
  • कुछ उपनाम राजपूत और मुस्लिम शासकों द्वारा सम्मानपूर्वक दिए गए हैं।
  1. बख्शी
  2. भगत
  3. देसाई
  4. सोफ़ा
  5. दुरकल
  6. हजरत
  7. जनिता
  8. जठळ
  9. झा
  10. काजी
  11. मजमूदार
  12. मजूमदार
  13. मेढ़
  14. मुंशी
  15. पारघी
  16. पोटा
  17. सैयद
  18. स्वाडिया
  • व्यवसाय के आधार पर कुछ अन्य नाम
  1. आचार्य
  2. बुच
  3. द्रुव
  4. जिकर
  5. मेहता
  6. नानावटी
  7. पंडित
  8. पुरोहित
  9. वैद्य
कुछ अन्य नाम

भट्ट, दवे, दिव्या, दीक्षित, ढोलकिया, द्विवेदी, झा, झाला, जोशी, कच्छी, मारू, महाराजा, ओझा, पंचोली, पाठकजी, रावल, शुक्ला, त्रिपाठी, त्रिवेदी, वोरा और व्यास


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