एक बार तीर्थ यात्रा के प्रसंग में भगवान् परशुराम महाराष्ट्र में
कोंकणक्षेत्र में चातुरंग पर्वत पर गए। उन्होंने वहाँ यज्ञ कराने के लिए
ब्राह्मणों को आमंत्रित किया, किन्तु ब्राह्मण नहीं आए। तब परशुराम ने
दिव्य प्रभाव से चितपावन ब्राह्मणों उत्पन्न करके उन्हें चितपोलन नामक गाँव
में बसाया-
चित्पावनस्य चोत्पत्तेरिदं निश्चयकारणम् |
सह्याद्रेश्च तले ग्रामं चितपोलन नामकम् ||
तत्रैव स्थापिता विप्रा यावच्चन्द्र दिवाकरौ ||
इन ब्राह्मणों का चित्त शुद्ध होने के कारण परशुराम ने इनका चित्तपावन नाम रखा-
दत्त्वेषां चित्तशुध्दिस्तु यस्मात्परशुरामतः |
चित्तशुध्दिः कृता तेषामस्मात्ते चित्त्पावनाः ||
चितपावन का शाब्दिक अर्थ है – चित्त अथवा मन की शुद्धि। अर्थात ऐसे
ब्राह्मण जो चित्त से पवित्र / पावन हैं वे चितपावन कहलाते हैं। चितपावन
ब्राह्मण या कोंकणस्थ ब्राह्मण भारत में महाराष्ट्र के तटीय क्षेत्र के
कोंकण से सम्बद्ध एक हिन्दू ब्राह्मण समुदाय है। यह समुदाय तब प्रमुखता में
आया जब 18 वीं सदी के दौरान बालाजी विश्वनाथ के भट परिवार से पेशवा के
वारिस मराठा साम्राज्य के वास्तविक शासक बन गए थे।
कुलस्वामी व कुलदेवियाँ –
चित्तपावन ब्राह्मण समाज में कुलस्वामी के रूप में गुहागर स्थित श्री
व्याडेश्वर की मान्यता है तथा कुलदेवियों के रूप में अंबाजोगाई की
योगेश्वरी देवी और भवानी, महालक्ष्मी, वज्राई, कोंकणस्थों की कुलदेवियाँ /
कुलदेवता हैं।
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