शीतला माता की अद्भुत कथा व इतिहास – कुलदेवीकथामाहात्म्य

इतिहास

Sheetla Mata Gurgaon Katha Itihas Hindi : हरियाणा के गुडगाँव नगर में शीतलामाता का इतिहासप्रसिद्ध मन्दिर है। शीतलामाता की अनेक समाजों में कुलदेवी के रूप में मान्यता है। श्रद्धालु जन बच्चों के मुण्डन तथा नवविवाहित जोड़े की जात के लिए गुडगाँव की शीतलामाता के दरबार में जाते हैं। मन्दिर के मुख्य द्वार के पास बड़ का पेड़ है। श्रद्धालु जन अपनी अभिलाषा की पूर्ति के लिए पेड़ के चुन्नी या मौली बांधकर शीतल जल चढ़ाकर मन्नत माँगते हैं।
अग्रवाल समाज के श्रद्धाकेन्द्रों में गुडगाँव की माताजी का मन्दिर महत्त्वपूर्ण है। ‘अग्रसेन अग्रोहा अग्रवाल’ नामक पुस्तक में गुडगाँव की माता का उल्लेख इस प्रकार है- ‘गुडगाँव जिसका शुद्ध नाम गौड़ग्राम है। यह नगर अगरवालों के पुरोहित को मिला था। इसी से आज भी अनेक परिवारों में गुडगाँव की माता की पूजा तथा मान्यता परम्परा रूप में प्रचलित है।’ (पृ. 303)

गुडगाँव से प्रकाशित पुस्तक श्रीशीतलामाता व्रतकथा नामक पुस्तक में गुडगाँव का प्राचीन नाम गुरुग्राम बताया गया है। यह गाँव कौरवों तथा पाण्डवों के गुरु द्रोणाचार्य को राज्य की ओर से मिला था, इसलिए इसका नाम गुरुग्राम पड़ा।

गुडगाँव की माता की महिमा की पुस्तकों में उनके चमत्कारों की अनेक कथाएँ वर्णित हैं। ओमप्रकाश जोशी द्वारा लिखित राजस्थान के लोकदेवता नामक ग्रन्थ के अनुसार शीतलामाता बच्चों की संरक्षिका तो मानी ही जाती हैं किन्तु “वन्ध्या” स्त्रियाँ पुत्रप्राप्ति के लिए भी शीतलामाता की पूजा करती हैं। बाघौर, गुडगाँव, तथा चाकसू की शीतला माता राजस्थान में अत्यन्त प्रसिद्ध हैं।

शीतला माता कथामाहात्म्य का हिंदी अनुवाद।

कथा 

॥ ॐ कुलदेव्यै नमः ॥


  • शस्त्रास्त्रविद्या में पारंगत और धुरंधर महान् वीर द्रोणाचार्य अत्यंत निर्धन थे। वे आजीविका के लिए घूमते हुए भाग्यवश एक गाँव में स्थित प्राचीन सिद्धपीठ में पहुँच गए जहाँ देवी शीतलामाता प्रतिष्ठित थीं। ब्राह्मणों में श्रेष्ठ द्रोणाचार्य उसी गाँव में ठहर गए।
  • आचार्य द्रोण के साथ उनकी पत्नी कृपी और नवयुवक पुत्र अश्वत्थामा थे। पतिव्रता कृपी प्रातःकाल स्त्रियों के साथ कृपामयी जगदम्बा शीतलामाता की पूजा करने गई।  उसने भक्ति और आनन्द से पति की भाग्यवृद्धि के लिए प्रार्थना की।
  • कृपी ने उसी गाँव में रहने हेतु पति से निवेदन किया। द्रोणाचार्य वहीं पर्णकुटी बनाकर सपरिवार रहने लगे।
  • गुणवती और सात्त्विक स्वभाव वाली कृपी परम श्रद्धा और भक्ति से शीतलामाता की उपासना करने लगी।
  • उसके बाद विद्वान् द्रोणाचार्य ने  हस्तिनापुर के लिए प्रस्थान किया। हस्तिनापुर के राजकुमारों कौरवों और पाण्डवों ने उन्हें वन में देखा।
  • द्रोणाचार्य ने हस्तिनापुर के राजकुमारों की कुएँ में गिरी गेन्द को बाणों की सहायता से बाहर निकाल दिया। उनके कौशल से राजकुमार विस्मित हो गए।
  • हस्तिनापुर के शासक धृतराष्ट्र ने द्रोणाचार्य को आमन्त्रित कर उन्हें राजकुमारों को शस्त्रास्त्रविद्या सिखाने के लिए नियुक्त कर दिया। शीतलामाता की कृपा अत्यन्त विलक्षण है।
  • बुद्धिमान द्रोणाचार्य को सपरिवार रहने के लिए राजकीय आवास दे दिया गया, किन्तु कृपी ने शुभ शीतलामन्दिर को छोड़ा नहीं।
  • वह नित्य शीतलामन्दिर में जाती।  वहाँ आनन्द से पूजा और प्रार्थना करती। उसकी वह अनन्य भक्ति क्रमशः बढ़ती गई।
  • जगदम्बा शीतलामाता की कृपा से द्रोणाचार्य धन और धान्य से सम्पन्न हो गए।
  • इसके बाद गुरुभक्त राजा युधिष्ठिर ने इन्द्रप्रस्थ का राज्य पाकर द्रोणाचार्य के निवास वाला वह गाँव उन्हें ही अर्पित कर दिया।
  • उसके बाद वह गाँव पृथ्वी पर गुरुग्राम नाम से विख्यात हो गया। कृपी सदा देवी शीतलामाता को पूजती रही।
  • कृपी सदा शीतलामाता की भावना में ही विभोर रहती थी। अन्त में देह त्यागकर, सायुज्यमुक्ति पाकर, वह शीतलामाता में विलीन हो गई। शीतलामाता गुरुग्राम की माता के नाम से विख्यात हो गई।
  • बहुत समय बीत जाने के बाद गुरुग्राम (गुडगाँव) का सामन्त शासक अपने पुत्र के रोग से खिन्न होकर, कृपाप्राप्ति के लिए माता की शरण में गया।
  • पुत्र के स्वस्थ हो जाने पर उस कृतज्ञ भक्त सामन्त ने माता के मन्दिर को भव्य रूप दिया तथा माता के महोत्सव का आयोजन किया।
  • अग्रोहानरेश अग्रसेन के गुरु गर्ग ऋषि समय-समय पर भक्ति से शीतलामाता का पूजन करते थे।
  • महाराज अग्रसेन ने वह गाँव गुरु को ही अर्पित कर दिया था। इस प्रकार गुरुग्राम (गुडगाँव) गुरु के माहात्म्य का सूचक है।
  • अग्रसेन के गुरुभक्त वंशज गुडगाँव की शीतलामाता के दरबार में मुण्डन आदि शुभ कार्यों के लिए जाते थे। अनेक श्रद्धालु जन अब भी जाया करते हैं।
  • देवी माता कृपा करके सब लोगों का हित करती हैं। वे इष्ट फल देती हैं तथा अनिष्ट को दूर करती हैं।
  • जो भक्त नित्य-नियम से पौराणिक शीतलास्तोत्र का पाठ करते हैं, माता उन पर प्रसन्न होती हैं।

कथा समाप्त

॥ ॐ कुलदेव्यै नमः ॥


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