गुजरात में साबरमती नदी के तट पर कोट्यर्क (कोटारकु) नामक सिद्धपीठ है। वहाँ अठारह ब्राह्मण नित्य नियम से आराधना करने लगे। ये ब्राह्मण खडायता कहलाए –
अर्थात कोट्यर्क पीठ में आराधना करने वाले अठारह ब्राह्मण खड़ायता ब्राह्मण कहलाए। दो-दो व्यक्ति प्रत्येक ब्राह्मण की सेवा-सुश्रूषा कर रहे थे। खड़ायता ब्राह्मणों के गौत्र एवं कुलदेवियाँ निम्नलिखित हैं –ततः सर्वेद्विजाः जाता खडायतेति संज्ञया |तस्माद्भवद्वन्शजानां खडायतेति नाम च ||अष्टादशानां विप्राणां द्वौ द्वौ तु परिचारकौ ||
खडायता ब्राह्मण समाज के गोत्र –
खडायता ब्राह्मण समाज की कुलदेवियाँ –जनकः कृष्णात्रेयश्चं कौशिकस्तु तृतीयकः |वसिष्ठश्च भारद्वाजो गार्ग्यो वत्सश्च सप्तमः |एतानि गौत्राणि द्विजर्षभाणां खडायतानां हि कृतानि तेन |
अथ देवीः प्रवक्ष्यामि तेषां चैव यथाक्रमम् |पूर्वं वाराहि नामा तु द्वितीया तु खरानना ||चामुण्डा बालगौरी च बन्धुदेवी तु पञ्चमी |षष्ठी च सौरभी नाम ह्यात्मच्छन्दा हि सप्तमी ||
खडायता ब्राह्मण समाज की गोत्र अनुसार कुलदेवी-सारणी (Khadayata Brahmin Samaj Gotra Kuldevi List)
गोत्र | कुलदेवी |
जनक (Janak) | बराही (Barahi) |
कृष्णात्रेय (Krishnatreya) | खरानना (Kharanana) |
कौशिक (Kaushik) | चामुण्डा (Chamunda) |
वशिष्ठ (Vashishth) | बालगौरी (Balgauri) |
भारद्वाज (Bhardvaj) | बंधुदेवी (Bandhudevi) |
गार्ग (Gaarg) | सौरभी (Saurbhi) |
वत्स (Vats) | आत्मछन्दा (Aatmachchhanda |
खडायता वैश्य / बनिया समाज के गोत्र व कुलदेवियाँ (Khadayata Baniya Samaj Gotra and Kuldevi)
अठारह ब्राह्मण भगवान् कोट्यर्क की आराधना कर रहे थे। उस समय प्रत्येक
ब्राह्मण की सेवा सुश्रूषा के लिए दो दो वैश्य लगे हुए थे। वे अठारह
ब्राह्मण खड़ायता ब्राह्मण और सेवारत वैश्य खड़ायता वैश्य कहलाए।
खड़ायता वैश्यों के गोत्रों और कुलदेवियों का ब्राह्मणोत्पत्ति मार्तण्ड में निम्नानुसार वर्णन है-
वणिजां च प्रवक्ष्यामि गोत्राणि विविधानि च |
गुन्दानुगोत्रं नान्दोलु मिंदियाणु तृतीयकं ||
नानु नरसाणु वैश्याणु मेवाणु सप्तमं तथा |
भटस्याणु साचेलाणु सालिस्याणु तथैव च ||
कागराणु तथा गोत्रंमिथ्यं च प्रकीर्तितम् ||
कुलदेवियों का वर्णन-
देव्यश्च द्वादश प्रोक्तास्तत्राद्या नेषुसंज्ञाका |
ततो गुणमयी प्रोक्ता नरेश्वरी तृतीयका ||
तुर्या नित्यानन्दिनी तु नरसिंही च पञ्चमी |
षष्ठी विश्वेश्वरी प्रोक्ता सप्तमी महिपालिनी ||
भण्डोदर्यष्टमी देवी शङ्करी नवमी तथा |
सुरेश्वरी च कामाक्षी देव्यो ह्येकादश स्मृताः ||तया कल्याणिनीयं वै द्वादशी तु प्रकीर्तिता ||
खडायता वैश्य / बनिया समाज की गोत्र अनुसार कुलदेवी-सारणी (Khadayata Vaishya / Baniya Samaj Gotra Kuldevi List)
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गोत्र | कुलदेवी |
गुंदाणु | नेषु देवी |
नांदोलु | गुणमयी |
मिंदियाणु | नरेश्वरी |
नानु | नित्यानन्दिनी |
नरसाणु | नरसिंही |
वैश्याणु | विश्वेश्वरी |
मेवाणु | महिपालिनी |
भटस्याणु | भण्डोदरी |
साचेलाणु | शङ्करी |
सालिस्याणु | सुरेश्वरी |
कागराणु | कामाक्षी |
कल्याण | कल्याणिनी |
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